सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे

आने पर मेरे बिजली-सी कौंधी सिर्फ तुम्हारे दृग में लगता है जाने पर मेरे सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे मैं आया तो चारण जैसा गाने लगा तुम्हारा आँगन हंसता द्वार, चहकती ड्योढी तुम चुपचाप खड़े किस कारण मुझको द्वारे तक पहुंचाने सब तो आये तुम्हीं न आये लगता है एकाकी पथ पर मेरे साथ तुम्हीं होओगे मौन तुम्हारा प्रश्न-चिन्ह है पूछ रहे शायद कैसा हूँ कुछ-कुछ चातक से मिलता हूँ कुछ-कुछ बादल के जैसा हूँ मेरा गीत सुना सब जागे तुमको जैसे नींद आ गयी लगता मौन प्रतीक्षा में तुम सारी रात नहीं सोओगे तुमने मुझे अदेखा करके संबंधों की बात खोल दी सुख के सूरज की आँखों में काली-काली रात घोल दी कल को यदि मेरे आँसू की मंदिर में पड़ गयी ज़रूरत लगता है आँचल को अपने सबसे अधिक तुम्हीं धोओगे परिचय से पहले ही बोलो उलझे किस ताने-बाने में तुम शायद पथ देख रहे थे मुझको देर हुई आने में जग भर ने आशीष उठाये तुमने कोई शब्द न भेजा लगता तुम भी मन की बगिया में गीतों का बिरवा बोओगे © Ramavtar Tyagi : रामावतार त्यागी