बहुत दूर डूबी पदचाप

गीतों के मधुमय आलाप यादों में जड़े रह गए बहुत दूर डूबी पदचाप चौराहे पड़े रह गए देखभाल लाल-हरी बत्तियाँ तुमने सब रास्ते चुने झरने को झरी बहुत पत्तियाँ मौसम आरोप क्यों सुने वृक्ष देख डाल का विलाप लज्जा से गड़े रह गए तुमने दिनमानों के साथ-साथ बदली हैं केवल तारीख़ें पर बदली घड़ियों का व्याकरण हम किस महाजन से सीखें बिजली के खंभे से आप एक जगह खड़े रह गए वह देखो, नदियों ने बाँट दिया पोखर के गङ्ढों को जल चमड़े के टुकड़े बिन प्यासा है आंगन चौबारे का नल नींदों के सिमट गए माप सपने ही बड़े रह गए © Dhananjaya Singh : धनंजय सिंह