Tag Archives: Gopaldas Neeraj Poems

गीत इक और ज़रा झूम के गा लूँ, तो चलूँ

ऐसी क्या बात है
चलता हूँ, अभी चलता हूँ
गीत इक और ज़रा झूम के गा लूँ, तो चलूँ

भटकी-भटकी है नज़र, गहरी-गहरी है निशा
उलझी-उलझी है डगर, धुँधली-धुँधली है दिशा
तारे ख़ामोश खड़े, द्वारे बेहोश पड़े
सहमी-सहमी है किरण, बहकी-बहकी है उषा
गीत बदनाम न हो, ज़िन्दगी शाम न हो
बुझते दीपों को ज़रा सूर्य बना लूँ तो चलूँ

बाद मेरे जो यहाँ और हैं गाने वाले
सुर की थपकी से पहाड़ों को सुलाने वाले
उजाड़ बाग़-बियाबान-सूनसानों में
छंद की गंध से फूलों को खिलाने वाले
उनके पैरों के फफोले न कहीं फूट पड़ें
उनकी राहों के ज़रा शूल हटा लूँ तो चलूँ

ये घुमड़ती हुईं सावन की घटाएँ काली
पेंगें भरती हुई आमों की ये गद्दड़ डाली
ये कुएँ, ताल, ये पनघट ये त्रिवेणी संगम
कूक कोयल की, ये पपिहे की पिऊँ मतवाली
क्या पता स्वर्ग में फिर इनका दरस हो कि न हो
धूल धरती की ज़रा सिर पे चढ़ा लूँ तो चलूँ

कैसे चल दूँ अभी कुछ और यहाँ मौसम है
होने वाली है सुबह पर न सियाही कम है
भूख, बेकारी, ग़रीबी की घनी छाया में
हर ज़ुबाँ बंद है हर एक नज़र पुरनम है
तन का कुछ ताप घटे, मन का कुछ पाप कटे
दुखी इंसान के आँसू में नहा लूँ तो चलूँ

© Gopaldas Neeraj : गोपालदास ‘नीरज’

 

प्रेम के पुजारी

प्रेम के पुजारी
हम हैं रस के भिखारी
हम है प्रेम के पुजारी

कहाँ रे हिमाला ऐसा, कहाँ ऐसा पानी
यही वो ज़मीं, जिसकी दुनिया दीवानी
सुन्दरी न कोई, जैसी धरती हमारी

राजा गए, ताज गया, बदला जहाँ सारा
रोज़ मगर बढ़ता जाए, कारवां हमारा
फूल हम हज़ारों लेकिन, ख़ुश्बू एक हमारी

© Gopaldas Neeraj : गोपालदास ‘नीरज’

फिल्म : प्रेम पुजारी (1970)
संगीतकार : सचिन देव बर्मन
स्वर : सचिन देव बर्मन

 

जीवन नहीं मरा करता है

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ लुटाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है

सपना क्या है, नयन सेज पर सोया हुई आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है

माला बिखर गई तो क्या है, ख़ुद ही हल हो गई समस्या
आँसू ग़र नीलाम हुए तो, समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फ़टी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आंगन नहीं मरा करता है

लाखों बार गगरियाँ फूटीं, शिक़न नहीं आई पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं, चहल-पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालों, लौ की आयु घटाने वालों
लाख करे पतझड़ क़ोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है

लूट लिया माली ने उपवन, लुटी न लेकिन गंध फूल की
तूफ़ानों तक ने छेड़ा पर, खिड़की बंद न हुई धूल की
नफ़रत गले लगाने वालों, सब पर धूल उड़ाने वालों
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से, दर्पण नहीं मरा करता है

© Gopaldas Neeraj : गोपालदास ‘नीरज’