Tag Archives: Kumar Vishwas Poems

बाँसुरी चली आओ

तुम अगर नहीं आईं, गीत गा न पाऊंगा
साँस साथ छोड़ेगी, सुर सजा न पाऊंगा
तान भावना की है, शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है

तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
शाम की उदासी में याद संग खेला है
कुछ ग़लत न कर बैठे मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ होंठ का निमंत्रण है

तुम अलग हुईं मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से, वक्त क़ी सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है, दर्द कैसे सहना है
ऑंख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचनी कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है

© Kumar Vishwas : कुमार विश्वास

 

फिर बसंत आना है

तूफ़ानी लहरें हों
अम्बर के पहरे हों
पुरवा के दामन पर दाग़ बहुत गहरे हों
सागर के माँझी मत मन को तू हारना
जीवन के क्रम में जो खोया है, पाना है
पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है

राजवंश रूठे तो
राजमुकुट टूटे तो
सीतापति-राघव से राजमहल छूटे तो
आशा मत हार, पार सागर के एक बार
पत्थर में प्राण फूँक, सेतु फिर बनाना है
पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है

घर भर चाहे छोड़े
सूरज भी मुँह मोड़े
विदुर रहे मौन, छिने राज्य, स्वर्णरथ, घोड़े
माँ का बस प्यार, सार गीता का साथ रहे
पंचतत्व सौ पर है भारी, बतलाना है
जीवन का राजसूय यज्ञ फिर कराना है
पतझर का मतलब है, फिर बसंत आना है

© Kumar Vishwas : कुमार विश्वास

 

उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती

उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती
हमको ही ख़ासकर नहीं मिलती

शाइरी को नज़र नहीं मिलती
मुझको तू ही अगर नहीं मिलती

रूह में, दिल में, जिस्म में दुनिया
ढूंढता हूँ मगर नहीं मिलती

लोग कहते हैं रूह बिकती है
मैं जहाँ हूँ उधर नहीं मिलती

© Kumar Vishwas : कुमार विश्वास