जिनके हिस्से अपनी माँ की लोरियाँ आती नहीं

जिनके हिस्से अपनी माँ की लोरियाँ आती नहीं उनके सपनों में भी परियाँ, तितलियाँ आती नहीं नींव पर जो स्वार्थ की चुनते गये, बुनते गये ऐसे रिश्तों में कभी नज़दीकियाँ आती नहीं मेरी इन आँखों के आँसू जानते हैं बात ये मेरी पलकों तक किसी की उंगलियाँ आती नहीं एक मुद्दत से मुझे तुम याद करते हो कहाँ एक मुद्दत से मुझे अब हिचकियाँ आती नहीं कौन-सा है घर जहाँ पर लोरियाँ गूंजी न हों कौन-सा है घर जहाँ से सिसकियाँ आती नहीं © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी