दौलत की लत क्यों पड़े दौलत की लत क्यों पड़े, सर को चलूँ उठाय। इतना ही दे रामजी, बस इज्ज़त रह जाय॥ © Naresh Shandilya : नरेश शांडिल्य Related posts: छोटा हूँ तो क्या हुआ ये सोना-चांदी हटा तू पत्थर की ऐंठ है जुगनू बोला चांद से ये हवा, ये धूप, ये बरसात पहले-सी नहीं ये चार काग़ज़, ये लफ्ज़ ढाई सर न झुकाया, हाथ न जोड़े खुली खिड़की-सी लड़की हमने तो बस ग़ज़ल कही है महफ़िल में मेरा ज़िक्र मेरे बाद हो न हो अब न रहीं वो दादी-नानी लहू से तर नैना गिरवी रख लिये बाबुल का रोग अपनी आवाज़ ही सुनूँ कब तक पहला-पहला प्यार चुप्पियाँ तोड़ना जरुरी है बदला-बदला लग रहा उसी तरह के रंग गौतम-सा सन्यास