तेरी महफ़िल में चले आए हैं लाशों की तरह
और आए हैं तो जी कर ही उठेंगे साक़ी
तूने बरसों जिसे आँखों में छिपाए रखा
आज उस जाम को पी कर ही उठेंगे साक़ी
© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी
तेरी महफ़िल में चले आए हैं लाशों की तरह
और आए हैं तो जी कर ही उठेंगे साक़ी
तूने बरसों जिसे आँखों में छिपाए रखा
आज उस जाम को पी कर ही उठेंगे साक़ी
© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी
ख़्वाब नाज़ुक़ थे छू लेने से बिखर जाते थे
इसलिए हम उन्हें बिन छेड़े गुज़र जाते थे
उम्र भर पर्दा हटाया न गया रुख़ से कभी
पहली क़ोशिश में ही वो शर्म से मर जाते थे
© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी
हर नए मोड़ पे बस एक नया ग़म चाहा
गहरे ज़ख़्मों के लिए थोड़ा-सा मरहम चाहा
हमने जो चाहा उसे पाया हमेशा लेकिन
एक अफ़सोस यही है कि बहुत कम चाहा
© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी
धड़कनें बेचैन, साँसों में उदासी है बहुत
ऐसा लगता है तुम्हारी रूह प्यासी है बहुत
तुम पियो जमकर कहीं कम पड़ नहीं जाए तुम्हें
क्या हमारी बात हमको तो ज़रा-सी है बहुत
© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी
अँखियाँ मधुमास लिए उर में, अलकों में भरी बरखा कह दूँ
छवि है जिसपे रति मुग्ध हुई, गति है कि कोई नदिया कह दूँ
उपमाएँ सभी पर तुच्छ लगें, इस अद्भुत रूप को क्या कह दूँ
बल खाती हुई उतरी मन में, बस प्रेम-पगी कविता कह दूँ
© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी
तुम गंध बनी, मकरंद बनी, तुम चन्दन वृक्ष की डाल बनी
अलि की मधु-गुंजन, भाव भरे, मन की मनभावन चाल बनी
कभी मुक्ति के पावन गीत बनी, कभी सृष्टि का सुन्दर जाल बनी
तुम राग बनी, अनुराग बनी, तुम छंद की मोहक ताल बनी
© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी