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भीतर एक दिया जलने दो

भीतर एक दिया जलने दो
बाहर उल्लू बोल रहे हैं भीतर एक दिया जलने दो।

ये अँधियारा पाख चल रहा
चांद दिनों दिन कम निकलेगा,
जब आयेगी रात उजाली
अंधियारे का दम निकलेगा,
उजियारा है दूर मगर उजियारे की बातें चलने दो।

द्वार लगा दो ताकि यहाँ तक
अंधियारे के दूत न आयें,
पुरवा पछुआ धोखा देकर
इस दीये को बुझा न जायें,
लौ शलभों को छले जा रही कुछ न कहो देखो, छलने दो।

आओ साथी पास हमारे
अंधियारे में दूर न जाओ,
जो न कह सके उजियारे में
वे सारी बातें बतलाओ,
उधर न देखो चांद ढल रहा ढल जायेगा तुम ढलने दो।

© Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल

 

बीड़ी जलइले

हीं चाहिएँ चांद-सितारे
इक सूरज देना भिनसारे
जिस पर रोटी सेंक सकूँ मैं
नहीं चाहिए शाम सुहानी
बस सूखे उपले मिल जाएँ
जिनकी धीमी आँच में खद-बद
दिन भर के सब दर्द पकाएँ
बुझे जिगर से कैसे हम
उमस भरी इस गर्मी में
सीली-सी बीड़ी सुलगाएँ
नहीं चाहिएँ चांद-सितारे
रात अंधेरी देना मौला
कितने भूखे पेट सोए हैं
जिससे कोई जान न पाए
रात अंधेरी देना मौला
फिर ख़ुशी-ख़ुशी कल सूरज आए
……ख़ुशी-ख़ुशी कल सूरज गाए-
”बीड़ी जलइले
जिगर से पिया
जिगर मा बड़ी आग है।”

© Vivek Mishra : विवेक मिश्र