अब शीघ्र करो तैयारी मेरे जाने की
रथ जाने को बाहर तैयार खड़ा मेरा
है मंज़िल मेरी दूर बहुत पथ दुर्गम है
हर एक दिशा पर डाला है तम ने डेरा
कल तक तो मैंने गीत मिलन के गाये थे
पर आज विदा का अंतिम गीत सुनाऊंगा
कल तक आंसू से मोल दिया जग जीवन का
अब आज लहू से बाकी क़र्ज़ सुनाऊंगा
कल खेला था अलियों कलियों के गलियों में
अब आज मुझे मरघट में रास रचाने दो
कल मुस्काया था बैठ किसी की पलकों पर
अब आज चिता पर बैठ मुझे मुस्काने दो
कल सुनकर मेरे गीत हँसे मुस्काये तुम
अब आज अश्रु तुम मेरे साथ बहा लेना
कल तक फूलों की मालाएं पहनाई थीं
गलहार अंगारों का पर अब पहना देना
बेकार बहाना, टाल-मटोल व्यर्थ सारी
आगया समय जाने का जाना ही होगा
तुम चाहे जितना चीखो चिल्लाओ रोओ
पर मुझको डेरा आज उठाना ही होगा
अब चाहूँ भी तो मैं रुक सकता नहीं दोस्त
कारण मंजिल ही खुद ढिंग बढ़ती आती है
मैं जितना पैर टिकाने की कोशिश करता
उतनी ही मिटटी और धसकती जाती है
वह देखो लहरों में तूफानी हलचल है
उस पार खड़ा हो कर कोई मुस्काता है
जिसके नयनों में मौन इशारों पर मेरा
साहिल खुद लहरों के संग बहता जाता है
फिर तुम्हीं कहो किस और बचूं, भागूं, जाऊं
नामुमकिन है अम्बर के ऊपर चढ़ जाना
है संभव नहीं धरा के ऊपर धंस जाना
नामुमकिन है धार पंख पवन में उड़ जाना
पर यदि यह भी सब संभव हो तो क्या बोलो
अपने से बच कर कौन कहाँ जा सकता है
सांसो पर जो पड़ चूका काल का नागपाश
उससे छुटकारा कौन कहाँ पा सकता है?
देखो चिपटी है राख चिता की पैरों में
अंगार बना जलता है रोम रोम मेरा
है चिता सृदश धू-धू करती सारी देही
है कफ़न बंधा सर पर सुधि को तम ने घेरा
हूँ इसीलिए कहता मत चीखो चिल्लाओ
मत आंसू से तुम मेरा पथ रोको साथी
मत फैलाओ आलिंगन की प्यासी बांहें
मत मुझे सुनाओ प्रेम भरी अपनी पाती
तुम कहते हो मेरे यूँ असमय जाने से
सारा संसार तुम्हें सूना हो जायेगा
जीवन की हंसी ख़ुशी मिट जायेगी सारी
यह पंथ कठिन दूभर दूना हो जायेगा
लेकिन यह कहने सुनने की बातें हैं सब
संसार किसी के लिए नहीं मिटता भाई
होती दुनिया सूनी न किसी के बिना कभी
है समय किसी के लिए नहीं रुकता भाई
© Gopaldas Neeraj : गोपालदास ‘नीरज’