कहीं जिंदगी में हम-तुम संयोग ऐसा पाएँ-
कभी गीत तुम सुनाओ, कभी गीत हम सुनाएँ !
आकाश गुनगुनाए, धरती न बोल पाए;
जो भी हो जिसको कहना, कभी सामने तो आए;
कहीं यामिनी में हम-तुम संयोग ऐसा पाएँ-
कभी दीप तुम जलाओ, कभी दीप हम जलाएँ !
नहीं चाहते सितारे, कभी चाँदनी पधारे;
रहे मेघ सिर पटकते, सौदामिनी के द्वारे;
कहीं चाँदनी में हम-तुम संयोग ऐसा पाएँ-
कभी तुम हमें मनाओ, कभी हम तुम्हें मनाएँ !
कह तक न पाऊँ ऐसा उन्माद भी नहीं है;
कुछ कहते डर रहे हैं कुछ याद भी नहीं है;
कहीं बेबसी में हम-तुम संयोग ऐसा पाएँ-
कभी याद तुम न आओ, कभी याद हम न आएँ !
© Balbir Singh Rang : बलबीर सिंह ‘रंग’