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कारवां हो जाएगा

साथ चलने का इरादा जब जवां हो जाएगा आदमी मिल आदमी से कारवां हो जाएगा तू किसी के पाँव के नीचे तो रख थोड़ी ज़मीं तू भी नज़रों में सभी की आसमां हो जाएगा © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

गहरी प्यास को जैसे मीठा जल देते तुम बाबूजी

गहरी प्यास को जैसे मीठा जल देते तुम बाबूजी जीवन को सारे प्रश्नों के हल देते तुम बाबूजी सबके हिस्से शीतल छाया, अपने हिस्से धूप कड़ी गर होते तो काहे ऐसे पल देते तुम बाबूजी माँ तो जैसे– तैसे रुखे-सूखे टुकड़े दे पाई गर होते तो टॉफ़ी, बिस्कुट, फल देते तुम बाबूजी अपने बच्चों को अच्छा– सा वर्तमान तो देते ही जीवन भर को एक सुरक्षित कल देते तुम बाबूजी काश तरक्की देखी होती अपने नन्हे-मुन्नों की फिर चाहे तो इस दुनिया से चल देते तुम बाबूजी © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

ज़िंदगी की उलझनें सुलझायेगा कैसे

किसी तक दिल की बातें जो कभी पहुँचा नहीं पाया जो ख़ुद को तीरगी से रोशनी में ला नहीं पाया भला वो ज़िंदगी की उलझनें सुलझायेगा कैसे किसी की ज़ुल्फ़ जो बिखरी हुई सुलझा नहीं पाया © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

मेरा दिल नहीं समझा

मेरे अहसास को तूने किसी क़ाबिल नहीं समझा धड़कता है जो मुझमें तूने मेरा दिल नहीं समझा मुझे तुझसे शिक़ायत है तो बस इतनी शिक़ायत है मुझे बस रास्ता समझा मुझे मंज़िल नहीं समझा © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

मिलने का बहाना ख़ूबसूरत है

यूँ छुपकर रोज़ मिलने का बहाना ख़ूबसूरत है नज़र मिलते ही नज़रों का चुराना ख़ूबसूरत है नहीं कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं फिर तो तुम्हारा साथ जब तक है, ज़माना ख़ूबसूरत है © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

बच्चे बात नहीं करते

मिलते हैं पर मिल के बात नहीं करते करते हैं तो दिल से बात नहीं करते पहले वक़्त नहीं था बच्चों की ख़ातिर वक़्त मिला अब बच्चे बात नहीं करते ख़ुद से ही बतियाता रहता है अक्सर उसके अपने उससे बात नहीं करते उसने कितनी बातें की थीं अपनों से अब कहता है अपने बात नहीं करते पैसा, पैसा, पैसा, करने वाले सुन इंसानों से पैसे बात नहीं करते © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

फ़िजा भी ख़ूबसूरत है

फ़िजा भी ख़ूबसूरत है, सनम भी ख़ूबसूरत है सितम भी ख़ूबसूरत है करम भी ख़ूबसूरत है करिश्माई निगाहों के करिश्मों का भी क्या कहना हक़ीक़त ख़ूबसूरत है भरम भी ख़ूबसूरत है © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

दर्द की जागीर बख़्शी है

कभी सोचूँ मुझे क्यूँ दर्द की जागीर बख़्शी है कभी सोचूँ मुझे ये किसलिए तक़दीर बख़्शी है सुना है इम्तिहाँ होते हैं केवल ख़ास लोगों के ख़ुदा ने ख़ास समझा तो मुझे ये पीर बख़्शी है © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

आनी-जानी दुनिया है

आनी-जानी दुनिया है ये कब किसकी दुनिया है दुनिया में सब लोगों की अपनी–अपनी दुनिया है सबसे अच्छा अपना घर यूँ तो सारी दुनिया है उसको ये अहसास कहाँ उससे मेरी दुनिया है अब उस पर क्या हक़ मेरा उसकी अपनी दुनिया है © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

गीत लिए फिरता हूँ मैं

गीत तुम्हारे तुमको सौंप सकूँ शायद बस्ती-बस्ती गीत लिए फिरता हूँ मैं प्यार की उन नन्हीं-नन्हीं सी राहों ने पर्वत जैसी ऊँचाई दे डाली है लेकिन सच्चाई ये किसको बतलाऊँ शिखरों पर आकर मन कितना ख़ाली है ख़ुद से हार गया पर सब की नज़रों में हर बाज़ी में जीत लिए फिरता हूँ मैं तुम्हें देखकर सूरज रोज़ निकलता था तुमको पाकर कलियाँ भी मुस्काती थीं तुमसे मिलकर फूल महकते उपवन के तुमको छूकर गीत हवाएँ गाती थीं बरसों बीते तुमने छुआ था पर अब तक साँसों में संगीत लिए फिरता हूँ मैं उजियारों की चाहत में जो पाए हैं अंधकार हैं, मेरे मीत संभालो तुम संबंधों के बोझ नहीं उठते मुझसे आकर अब तो अपने गीत संभालो तुम जो भी दर्द भी मिला दुनिया में रिश्तों से गीतों में, मनमीत! लिए फिरता हूँ मैं कब तक , आख़िर कब तक इक बंजारे-सा बतलाओ तो मुझको जीवन जीना है कब तक आख़िर कब तक यूँ हँसकर निश-दिन अमरित की चाहत में ये विष पीना है चेहरे पर चेहरे वालों की दुनिया में दिल में सच्ची प्रीत लिए फिरता हूँ मैं © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी