पल भर की पहचान

युग-युग का इतिहास लिख रही, पल भर की पहचान तुम्हारी! मिलने को हमस ब मिलते हैं, पर तुम जैसे कब मिलते हैं ? सब कोई तो नहीं धरा पर परिचित हाने के अधिकारी! दोनों एक लोक के प्राणी, मेरी आग, तुम्हारा पानी; मेरी व्यथा बता देती है, इसीलिए मुस्कान तुम्हारी! यौवन के अम्बर की आँधी, तुमने दो साँसों में बाँधी; ओ, मेरे अकलंक -देवता तेरे संयम की बलिहारी ! © Balbir Singh Rang : बलबीर सिंह ‘रंग’