सिलसिला रखना पड़ा

मरते दम तक बेबफ़ा से सिलसिला रखना पड़ा टूटे दिल को देख, कितना हौसला रखना पड़ा शब के पिछले पहर अक्सर चांदनी से बात की दिल को बहलाने को क्या-क्या राब्ता रखना पड़ा साथ चलता देखकर रस्ता बदल जाएगा वो पीछे चलकर दो क़दम का फ़ासला रखना पड़ा थक न जाए जज्बा-ए-दिल, पा के मंज़िल को कहीं पाँव में हर गाम ताज़ा आबला रखना पड़ा बेयक़ीनी को रहा हरदम यक़ीं, लौटेगा वो हर को हर शब ‘जोश’ दरवाज़ा खुला रखना पड़ा © Abdul Gafoor Josh : अब्दुल ग़फ़ूर ‘जोश’