Tag Archives: Jagdish Savita Poems

विश्वामित्र

इन्द्र को हर समय अपने सिंहासन की फ़िक्र लगी रहती है। विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए स्वर्ग से मेनका नामक अप्सरा को भेजा गया। वह सफल भी हुई। कहते हैं शकुन्तला, जो आगे

चलकर कण्व ॠषि के आश्रम में पल कर बड़ी हुई, विश्वामित्र और मेनका की ही पुत्री थी।

मत पूछ अप्सरे!
इस मुस्कान का रहस्य मत पूछ
समझ ले कि यूँ ही बस
मुझसे रहा नहीं गया!
तेरी भौहों में तने विजयादर्प की-
डरता हूँ
-कहीं शिंजा ही न टूट जाए!
यह साफ शरारती हँसी
इसमें आग भी लग सकती है।

इन्द्रासन सुरक्षित हुआ
तेरी अर्थ सिद्धि हो गई
अब तू जा
तपोवन हम जैसों के लिए है

मैं कह तो दूँ
पर तू
मात्र अभिनय ही रहा हो
जिसके सम्पूर्ण अस्तित्व का अर्थ
तू समझेगी क्या?

सत्य दर्शन
ये रहस्य की बातें
तू समझ सकती
तो कैसे वह महफिल सजती?
न नाचती होती
हत-बल देवताओं के
ईष्यालु शासक के इशारों पर
और बार-बार यह जो तुझे
नीचे उतर आना होता है
यह भी न होता।

सूने में मधुबन
तू क्या समझती है
कोई अनंग आ कर भर गया?
पर जान सके यदि
है यह भी तपस्या का ही चमत्कार!

वृथा डरता है तेरा लोभी स्वामी
हम तपस्वी तो
किसी का स्वर्ग हड़पने नहीं
अपितु तुझे उतार लाने को
समाधिस्थ होते हैं, नादान!

स्वयं मुक्ति आकर गलबाँहें डाले
कल्पना मूर्ति के अधरों का रसपान
मैंने भगवान को नाचते देखा है
मगर
अब बता कैसे न हँसता?
-वह समझता है कि
मेरी तपस्या धूल कर चला!

© Jagdish Savita : जगदीश सविता

 

यो-यो

गलियारे में खेल रहे
उछल-कूद करते
लड़ते-भिड़ते
बच्चे ही तो हैं हम

अनागत की भाँप कर परछाई
भौचक
सहम जाते हैं

दौड़ पड़ते हैं
मुँह छिपाने को
अतीत की गोद में
करते हैं स्मृतियों का स्तनपान
चेहरे और चेहरे और चेहरे
घटनाएँ, दुर्घटनाएँ
बोल….
अघा कर
फिर उतर आते हैं सड़क पर
फिर वही
सिर पर मण्डराते
अनागत के साए
फिर वही
अतीत की गोद में लुक-छिप रहना
और जाएँ भी कहाँ?

© Jagdish Savita : जगदीश सविता

 

द्रोण

आचार्य था
मगर ट्यूशनिया
राजकुमारों से आगे न निकल जाए कोई!
उसे तो तुमने नहीं सिखाया
धनुर्विद्या का ‘क’ ‘ख’ भी
मगर वाह रे भील बालक
तुम नहीं थे
तो तुम्हारी मूर्ति को ही पूजता रहा
और तुम्हीं ने
गुरु दक्षिणा का स्वांग रच
कटवा डाला उसका अंगूठा!
इसीलिए ना!
कि कहीं पिछड़ न जाए तुम्हारा टॉपर

और जब पाण्डव हो गए खल्लास
तो कौरवों की कमान संभाल ली
वहाँ बेटे अश्वत्थामा को भी
मिल गया काम!
वाह गुरु वाह
मारे भी गए तो
अपने एक चहेते चेले के हाथों
सम्मान पूर्वक!

© Jagdish Savita : जगदीश सविता

 

यक्ष

जानता था
चारों मृतकों का कोई अपना
आएगा
मेरे प्रश्नों के उत्तर लेकर
तैयार भी बैठा था
उसके प्रश्नों के उत्तरों के लिए

उसने कोई प्रश्न नहीं पूछा
उसे जल्दी थी
अपनी माँ की प्यास बुझाने की
उससे भी अधिक आतुरता थी
चिन्ता थी
चारों मृतकों में प्राण फूँकने की
उस प्रायौगिक परीक्षा में भी
वह पूरा उतरा
लेकर चला गया
अपनी माँ और भाइयों को

मैं बैठा सोचता रहा
बड़ा प्रश्न कर्त्ता नहीं होता
उत्तरदाता होता है बड़ा
वह सचमुच धर्मराज था
जो बिना उंगली उठाए
बिना प्रश्नचिन्ह लगाए
चला गया
चुप-चाप

© Jagdish Savita : जगदीश सविता

 

 

कैसट

बीते हुए दिनों की कैसट
जाने कौन चला देता है
ठगा-ठगा सा देख रहा हूँ!

कोहरा ढके ढलान
दहाड़ते जल-प्रपात
जंगल और खलिहान
हाट
त्यौहार और मेले
सम्पर्कों की भीड़
किताबें
यात्रा
पिकनिक
स्कूल को जाते बच्चे
छैला बाबू
माँ, बहिनें, भाई
बेकार बाप
सठियाया बुङ्ढा
गीतों का दीवाना

ये सब
मैं ही हूँ
विश्वास न होता
ठगा-ठगा सा देख रहा हूँ

© Jagdish Savita : जगदीश सविता

 

आदि देव

फास्ट-फास्ट-
वह भी सोच-समझकर
-डिक्टेशन लेने में
जवाब नहीं गणेश जी का
और किसी के आदि देव हों न हों
आशुलिपिकों के तो हैं ही!

© Jagdish Savita : जगदीश सविता

 

भीड़

मुझ में सीता
मुझ में राम
मुझ में राधा और घनश्याम
मीरा मुझ में, कबिरा मुझ में
मुझ में पद्मावत, अखरावट
मुझ में रासो, मुझ में आल्हा
मुझ में शेक्सपीयर, सुकरात
मुझ में होमर
मुझ में गेटे
बीथोवन और बैजू बावरा
ईसा मुझ में
मूसा मुझ में
सूफी और कलन्दर मुझ में
मुझमें ग़ालिब और इक़बाल
रवीन्द्रनाथ, ख़य्याम और पुश्क़िन
रश्दी और नसरीन भी मुझ में
मुझ में गांधी
मुझ में जिन्ना
हाय मेरे रब्बा
भीड़ लगी है
मेरे घर इतने मेहमान
मैं हैरान!

© Jagdish Savita : जगदीश सविता

 

गल्प मोहिनी

गल्प मोहिनी
आभारी हूँ
तूने सैर कराई मुझको
गुलिस्तान की
परिस्तान की
अद्भुत रेगिस्तान समुन्दर
कभी सिकन्दर
कभी कलन्दर
अली बाबा, सिन्दबाद जहाज़ी
वह तेरा मुल्ला, वह तेरा काज़ी
तिलिस्म अरे शैतानी- अल्लाह
शमशीर-ए-सुलेमानी- अल्लाह
अहा चिराग़-ए-अलादीन
शहज़ादी है पर्दानशीन
बाज़ीगरों के ज़ौहर देखे
सौदागरों के गौहर देखे
चांदनी रात और पेड़ खजूर
नाच रही बसरे की हूर
वल्ले वळुर्बान
मेरी जान!
ऐसी आज पिला दे साक़ी
होश-हवास रहे न बाक़ी!

© Jagdish Savita : जगदीश सविता