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प्रेम क्या है

प्रेम क्या है
रतिक्रिया-
अथवा आत्मरति
महत्वकांक्षा
घृणा
या व्यापार मानस मंथन का
अथवा पाना स्वयं को दूसरे में
सुनो-सुनो
मैं भुजा उठाकर कहता हूँ
सुनो, प्रेम है
लघुत्तम समापवर्त्य
इन सबका

© Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर

 

बूंदों की भाषा

खिड़की में से आती धीमी हवा
और ठण्डी फुहार
दिलाती हैं
तुम्हारी कमी का अहसास
और भी तेज़ी से

चाहता है मन,
कि भीगें इस फुहार में
साथ-साथ…
और चलते रहें कहीं दूर
और दूर….

या फिर घर में बैठे रहें
साथ-साथ,
और ढेर सारी बातें करें
धीमे-धीमे!

लेकिन केवल ख़्याल ही हैं ये
मैं बैठी हूँ अकेली
खिड़की से देखती
इस फुहार को
और सोचती हुई
तुम्हारे बारे में
तुम्हारी खिड़की के बाहर भी
बरस रही होंगी बूंदें
उनकी भाषा
तुम समझ पा रहे हो?
वो कह रही हैं जो कुछ
तुम सुन रहे हो ना?

…या फिर
भीगने के डर से
खिड़की बन्द किए
सो रहे हो
आराम से?

© Sandhya Garg : संध्या गर्ग

 

स्मृतियाँ

अधखुली ऑंखों में
थिरकती नन्हीं पुतलियाँ
प्रतिबिम्बों का भार ढो रही हैं
पश्चिम के दरवाज़े पर
प्रतीक्षा से ऊबी
स्मृतियाँ
सिसक-सिकक
रो रही हैं।

– आचार्य महाप्रज्ञ

 

अपनी आवाज़ ही सुनूँ कब तक

अपनी आवाज़ ही सुनूँ कब तक
इतनी तन्हाई में रहूँ कब तक

इन्तिहा हर किसी की होती है
दर्द कहता है मैं उठूँ कब तक

मेरी तक़दीर लिखने वाले, मैं
ख़्वाब टूटे हुए चुनूँ कब तक

कोई जैसे कि अजनबी से मिले
ख़ुद से ऐसे भला मिलूँ कब तक

जिसको आना है क्यूँ नहीं आता
अपनी पलकें खुली रखूँ कब तक

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

हम क्यों बहक रहे हैं

हमें कुछ पता नहीं है हम क्यों बहक रहे हैं
रातें सुलग रही हैं दिन भी दहक रहे हैं
जब से है तुमको देखा हम इतना जानते हैं
तुम भी महक रहे हो हम भी महक रहे हैं

© Vishnu Saxena : विष्णु सक्सेना

 

तुम गंध बनी, मकरंद बनी

तुम गंध बनी, मकरंद बनी, तुम चन्दन वृक्ष की डाल बनी
अलि की मधु-गुंजन, भाव भरे, मन की मनभावन चाल बनी
कभी मुक्ति के पावन गीत बनी, कभी सृष्टि का सुन्दर जाल बनी
तुम राग बनी, अनुराग बनी, तुम छंद की मोहक ताल बनी

© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी

 

हम उलझ रहे हैं

बरसात भी नहीं है बादल गरज रहे हैं
सुलझी हुई लटे हैं और हम उलझ रहे हैं
मदमस्त एक भँवरा क्या चाहता कली से
तुम भी समझ रहे हो हम भी समझ रहे हैं

© Vishnu Saxena : विष्णु सक्सेना

 

दिल की गई चिंता उतर

जब यार देखा नैन भर, दिल की गई चिंता उतर
ऐसा नहीं कोई अजब, राखे उसे समझाय कर

जब आँख से ओझल भया, तड़पन लगा मेरा जिया
हक्क़ा इलाही क्या किया, आँसू चले भर लाय कर

तू तो हमारा यार है, तुझ पर हमारा प्यार है
तुझ दोस्ती बिसियार है, इक शब मिलो तुम आय कर

‘ख़ुसरो’ कहे बातें ग़ज़ब, दिल में न लाए कुछ अजब
क़ुदरत ख़ुदा की है अजब, जब जिस दिया गुल लाय कर

Ameer Khusro : अमीर ख़ुसरो