जो काँटों के पास थे जो काँटों के पास थे, हरदम मिले उदास वो फूलों से खिल गये, जो फूलों के पास © Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल Related posts: ना वो बचपन रहा मुझे मेरे ही भीतर से उठाकर ले गया कोई जीनी है ज़िन्दगी तो जियो प्यार की तरह बाबुल का रोग ज़माने ने कभी ऐसा कोई मंज़र नहीं देखा बदला-बदला लग रहा उसी तरह के रंग गौतम-सा सन्यास सपने में भी दीखता अब मोबाइल फोन एक क़दम की चूक से हँसते-हँसाते रहे एक नज़र में प्यार ज़माना बदल गया प्रेम के पुजारी हम उलझ रहे हैं छोटा हूँ तो क्या हुआ दीयाबत्ती तुम्हारे शहर से जाने का मन है माटी प्रेम क्या है