भारतीय समाज

कहते हैं इस साल हर साल से पानी बहुत ज्यादा गिरा पिछ्ले पचास वर्षों में किसी को इतनी ज़्यादा बारिश की याद नहीं है कहते हैं हमारे घर के सामने की नालियाँ इससे पहले इतनी कभी नहीं बहीं न तुम्हारे गाँव की बावळी का स्तर कभी इतना ऊँचा उठा न खाइयाँ कभी ऐसी भरीं, न खन्दक न नर्मदा कभी इतनी बढ़ी, न गन्डक पंचवर्षीय योजनाओं के बांध पहले नहीं थे मगर वर्षा में तब लोग एक गाँव से दूर-दूर के गाँवों तक सिर पर सामान रख कर यों टहले नहीं थे और फिर लोग कहते हैं ज़िंदगी पहले के दिनों की बड़ी प्यारी थी सपने हो गए वे दिन जो रंगीनियों में आते थे रंगीनियों में जाते थे जब लोग महफिलों में बैठे-बैठे रात भर पक्के गाने गाते थे कम्बख़्त हैं अब के लोग और अब के दिन वाले क्योंकि अब पहले से ज़्यादा पानी गिरता है और कम गाए जाते हैं पक्के गाने और मैं सोचता हूँ ये सब कहने वाले हैं शहरों के रहने वाले इन्हें न पचास साल पहले खबर थी गाँव की न आज है ये शहरों का रहने वाला ही जैसे भारतीय समाज है © Bhawani Prasad Mishra : भवानी प्रसाद मिश्र