अक्ल नहीं आई

तुम काग़ज़ पर लिखते हो वह सड़क झाड़ता है तुम व्यापारी वह धरती में बीज गाड़ता है । एक आदमी घड़ी बनाता एक बनाता चप्पल इसीलिए यह बड़ा और वह छोटा इसमें क्या बल सूत कातते थे गांधी जी कपड़ा बुनते थे और कपास जुलाहों के जैसा ही धुनते थे चुनते थे अनाज के कंकर चक्की पीसते थे आश्रम के अनाज यानि आश्रम में पिसते थे जिल्द बांध लेना पुस्तक की उनको आता था भंगी-काम सफाई से नित करना भाता था ऐसे थे गांधी जी ऐसा था उनका आश्रम गांधी जी के लेखे पूजा के समान था श्रम एक बार उत्साह-ग्रस्त कोई वक़ील साहब जब पहुँचे मिलने बापूजी पीस रहे थे तब बापूजी ने कहा- बैठिए पीसेंगे मिलकर जब वे झिझके गांधीजी ने कहा और खिलकर सेवा का हर काम हमारा ईश्वर है भाई बैठ गए वे दबसट में पर अक्ल नहीं आई । © Bhawani Prasad Mishra : भवानी प्रसाद मिश्र