‘नीरज’ गा रहा है

अब ज़माने को ख़बर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है जो झुका है, वह उठे अब सर उठाए जो रुका है, वह चले नभ चूम आए जो लुटा है, वह नए सपने सजाए ज़ुल्म-शोषण को खुली देकर चुनौती प्यार अब तलवार को बहला रहा है। अब ज़माने को ख़बर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है हर छलकती आँख को वीणा थमा दो हर सिसकती साँस को कोयल बना दो हर लुटे सिंगार को पायल पिन्हा दो चांदनी के कंठ में डाले भुजाएँ गीत फिर मधुमास लाने जा रहा है। अब ज़माने को ख़बर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है जा कहो तम से, करे वापस सितारे मांग लो बढ़कर धुएँ से अब अँगारे बिजलियों से बोल दो घूंघट उघारे पहन लपटों का मुकुट काली धरा पर सूर्य बनकर आज श्रम मुस्का रहा है। अब ज़माने को ख़बर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है शोषणों की हाट से लाशें हटाओ मरघटों को खेत की ख़ुश्बू सुंघाओ पतझरों में फूल के घुंघरू बजाओ हर क़लम की नोक पर मैं देखता हूँ स्वर्ग का नक्शा उतरता आ रहा है। अब ज़माने को ख़बर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है इस तरह फिर मौत की होगी न शादी इस तरह फिर ख़ून बेचेगी न चांदी इस तरह फिर नीड़ निगलेगी न आंधी शांति का झंडा लिए कर में हिमालय रास्ता संसार को दिखला रहा है। अब ज़माने को ख़बर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है © Gopaldas Neeraj : गोपालदास ‘नीरज’