शिव का तांडव नर्तन लेटी है माँ जहाँ उनके चरणों में और लील गया है वह स्पर्श उनकी उग्रता को भाषा के क्रूर हाथों में मनुष्य का कंकाल उगल रहा है, काला लहू। Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर
शिव का तांडव नर्तन लेटी है माँ जहाँ उनके चरणों में और लील गया है वह स्पर्श उनकी उग्रता को भाषा के क्रूर हाथों में मनुष्य का कंकाल उगल रहा है, काला लहू। Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर