भावुकता को प्यार नहीं मानूँगा

मैं भावुकता को प्यार नहीं मानूँगा !
मैं लहरों को मँझधार नहीं मानूँगा!

भावुकता का परिणाम क्षणिक होता है,
लहरों का विकल-विराम क्षणिक होता है;
मलयानिल की मंथर-गति के स्वागत में,
विटपों का मौन प्रणाम क्षणिक होता है;

तुम क्षणिक-मिलन को चाहे जो कुछ समझो,
मैं दर्शन को, अभिसार नहीं मानूँगा !

मैं करूँ कल्पनाओं कर विकसित कलियाँ,
तुम भरो भावनाओं की मधुमय गलियाँ;
मैं धरती पर नभ की नीरवता ला दूँ,
तुम नित्य मनाओ तारों से रँगरलियाँ;

तुम कहो सफलता को अपनी अन्तिम-जय,
मैं असफलता को, ‘हार‘ नहीं मानूँगा !

रवि, शशि भी मेरी भाँति न जल पाते हैं,
सुख- दुख भी मेरे साथ न चल पाते हैं;
पथ की ऊँची-नीची बाधाओं में भी,
गिर कर मेरे अरमान सँभल जाते हैं;

अवलम्ब किसी का मिले न मुझको फिर भी-
मैं आश्रय को, आधार नहीं मानूँगा !

© Balbir Singh Rang : बलबीर सिंह ‘रंग’