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जे हाल मिसकी मकुन तगाफ़ुल

जे हाल मिसकी मकुन तगाफ़ुल, दुराय नैना बनाय बतियाँ
कि ताबे हिज़्राँ न दारम ऎ जां! न लेहु काहे लगाय छतियाँ

शबाने हिज़्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़, व रोज़े वसलत चूँ उम्र कोलह
सखी! पिया को जो मैं न देखूँ, तो कैसे काटूँ अंधेरी रतियाँ

यकायक अज़ दिल, दो चश्म-ए-जादू, ब सद फ़रेबम बाबुर्द तस्कीं
किसे पड़ी है जो जा सुनावे, पियारे पी को हमारी बतियाँ

चो शमा सोज़ान, चो ज़र्रा हैरान, हमेशा गिरयान, बे इश्क आं मेह
न नींद नैना, ना अंग चैना, ना आप आवें, न भेजें पतियाँ

बहक्क-ए-रोज़े, विसाल-ए-दिलबर, कि दाद मारा, ग़रीब ‘खुसरौ’
सपेट मन के, वराये राखूँ, जो जाये पाँव, पिया के खटियाँ

Ameer Khusro : अमीर ख़ुसरो

 

ज़माने ने कभी ऐसा कोई मंज़र नहीं देखा

ज़माने ने कभी ऐसा कोई मंज़र नहीं देखा
हमारे हाथ में उठता हुआ पत्थर नहीं देखा

मुझे बिजली के गिरने पर फ़क़त इतनी शिक़ायत है
कि इक मासूम का टूटा हुआ छप्पर नहीं देखा

वही मंज़िल पे पहुँचे हैं हमेशा वक़्त से पहले
जिन्होंने पाँव में चुभता हुआ पत्थर नहीं देखा

निभाई दोस्ती मुंसिफ़ ने क़ातिल को रिहा करके
हमारी पीठ में उतरा हुआ ख़ंजर नहीं देखा

जिन्होंने पेड़ नेकी के लगाए इस ज़माने में
उन्होंने ख़ुद किसी भी मोड़ पर पतझर नहीं देखा

सुनो क्या गुज़री उस बाबुल पे बेटी की विदाई पर
कि जिसने जाती डोली की तरफ़ मुड़कर नहीं देखा

© Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल

 

राज़ हर रंग में रुसवा होगा

लब-ए-ख़मोश से अफ़्शा होगा
राज़ हर रंग में रुसवा होगा

दिल के सहरा में चली सर्द हवा
अब्र गुलज़ार पे बरसा होगा

तुम नहीं थे तो सर-ए-बाम-ए-ख़याल
याद का कोई सितारा होगा

किस तवक्क़ो पे किसी को देखें
कोई तुम से भी हसीं क्या होगा

ज़ीनत-ए-हल्क़ा-ए-आग़ोश बनो
दूर बैठोगे तो चर्चा होगा

ज़ुल्मत-ए-शब में भी शर्माते हो
दर्द चमकेगा तो फिर क्या होगा

जिस भी फ़नकार का शाहकार हो तुम
उस ने सदियों तुम्हें सोचा होगा

किस क़दर कब्र से चटकी है कली
शाख़ से गुल कोई टूटा होगा

उम्र भर रोए फ़क़त इस धुन में
रात भीगी तो उजाला होगा

सारी दुनिया हमें पहचानती है
कोई हम सा भी न तनहा होगा

© Ahmad Nadeem Qasmi : अहमद नदीम क़ासमी

 

सर न झुकाया, हाथ न जोड़े

सर न झुकाया, हाथ न जोड़े
बेशक़ हम पर बरसे कोड़े

लाख परों को कतरा उसने
ख़ूब क़फ़स हमने भी तोड़े

हार गए ना दिल से आख़िर
दौड़े लाख ‘अक़ल के घोड़े’

हम वो एक कथा हैं जिसने
लाखों क़िस्से पीछे छोड़े

हमसे मत टकराना बबुआ
हमने रुख़ तूफ़ां के मोड़े

© Naresh Shandilya : नरेश शांडिल्य

 

रुकना इसकी रीत नहीं है

रुकना इसकी रीत नहीं है
वक़्त क़िसी का मीत नहीं है

जबसे तन्हा छोड़ गए वो
जीवन में संगीत नहीं है

माना छल से जीत गए तुम
जीत मगर ये जीत नहीं है

जिसको सुनकर झूम उठे दिल
ऐसा कोई गीत नहीं है

जाने किसका श्राप फला है
सपनों में भी ‘मीत’ नहीं है

© Anil Verma Meet : अनिल वर्मा ‘मीत’

 

कभी दस्तूर शीशे के

साइल राहे-उल्फ़त में मिले भरपूर शीशे के
कभी दीवार शीशे की, कभी दस्तूर शीशे के

ये दुनिया ख़ुद में है फ़ानी यहाँ सब टूट जाता है
महल वालो न रहना तुम, नशे में चूर, शीशे के

वो कोई दौर था, जब थी फटी चादर कबीरों की
यहाँ शीशे के ग़ालिब हैं, यहाँ हैं सूर शीशे के

नहीं मालूम कैसे, कब, कहाँ से आ गए पत्थर
चलो अच्छा हुआ हम-तुम खड़े थे दूर शीशे के

नहीं मंज़ूर हमको दोस्त पत्थर के ‘चरन’ सुन ले
मगर दुश्मन भी हमको तो नहीं मंज़ूर शीशे के

 

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

अपनी आवाज़ ही सुनूँ कब तक

अपनी आवाज़ ही सुनूँ कब तक
इतनी तन्हाई में रहूँ कब तक

इन्तिहा हर किसी की होती है
दर्द कहता है मैं उठूँ कब तक

मेरी तक़दीर लिखने वाले, मैं
ख़्वाब टूटे हुए चुनूँ कब तक

कोई जैसे कि अजनबी से मिले
ख़ुद से ऐसे भला मिलूँ कब तक

जिसको आना है क्यूँ नहीं आता
अपनी पलकें खुली रखूँ कब तक

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

ये चार काग़ज़, ये लफ्ज़ ढाई

ये चार काग़ज़, ये लफ्ज़ ढाई
है उम्र भर की यही कमाई

किसी ने हम पर जिगर उलीचा
किसी ने हमसे नज़र चुराई

दिया ख़ुदा ने भी ख़ूब हमको
लुटाई हमने भी पाई-पाई

न जीत पाए, न हार मानी
यही कहानी, ग़ज़ल, रुबाई

न पूछ कैसे कटे हैं ये दिन
न माँग रातों की यूँ सफाई

© Naresh Shandilya : नरेश शांडिल्य

 

Vishal Bagh : विशाल बाग़

नाम : विशाल बाग़
जन्म : 25 मई 1982; कश्मीर
शिक्षा : बी.ई. (इलैक्ट्रॉनिक्स एन्ड टेलीकॉम)

निवास : गुरुग्राम

कश्मीर की खूबसूरती का एहसास कराती विशाल बाग़ की शायरी में एक ऐसा नयापन है जो अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता. मूलतः विशाल एक अभियंता हैं लेकिन मशीनी दिनचर्या से घिरे इस सुख़नवर के एहसास बेहद नाज़ुक और ताज़ा हैं. संवेदना के उस मुक़ाम तक विशाल की शायरी सफर कराती है जहाँ आश्चर्य और
सुकून एक साथ आ मिलते हैं. बचपन के खुशनुमा मंज़रों को अशआर में पिरो देने का हुनर विशाल की सबसे ख़ास दौलत है. इश्क़ की मीठी चुभन इन अशआर को संवारती है तो ज़िन्दगी के मसाइल में शामिल धड़कनो की आवाज़ से इनका नूर हज़ार गुना बढ़ जाता है.

 

जीनी है ज़िन्दगी तो जियो प्यार की तरह

जीनी है ज़िन्दगी तो जियो प्यार की तरह
क्यूँ जी रहे हो तुम इसे तक़रार की तरह

बनना है गर महकते हुए फूल ही बनो
पाँवों में मत चुभो किसी के ख़ार की तरह

मिलना है मुझसे गर तो खुले ज़ेह्न से मिलो
मिलना नहीं है अब मुझे हर बार की तरह

गर चाहते हो तुमको मिलें क़ामयाबियाँ
चलना पड़ेगा वक़्त की रफ़्तार की तरह

जीवन के हर इक पल को जियो धूमधाम से
मत बेवज़ह जियो किसी बीमार की तरह

जिस घर ने पाल-पोस के तुमको बड़ा किया
आंगन को उसके बाँटो मत दीवार की तरह

दोज़ख़ में भी उनको ज़मीं दो गज़ न मिलेगी
माँ-बाप जिन्हें लगने लगें भार की तरह

© Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल