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ओस की बूँदें पड़ीं तो

ओस की बूँदें पड़ीं तो पत्तियाँ ख़ुश हो गईं
फूल कुछ ऐसे खिले कि टहनियाँ ख़ुश हो गईं

बेख़ुदी में दिन तेरे आने के यूँ ही गिन लिये
एक पल को यूँ लगा कि उंगलियाँ ख़ुश हो गईं

देखकर उसकी उदासी, अनमनी थीं वादियाँ
खिलखिलाकर वो हँसा तो वादियाँ ख़ुश हो गईं

आँसुओं में भीगे मेरे शब्द जैसे हँस पड़े
तुमने होठों से छुआ तो चिट्ठियाँ ख़ुश हो गईं

साहिलों पर दूर तक चुपचाप बिखरी थीं जहाँ
छोटे बच्चों ने चुनी तो सीपीयाँ ख़ुश हो गईं

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

डर

कुछ उसकी हिम्मत का डर
कुछ जग की सीरत का डर

कभी कभी नफ़रत का डर
और कभी उल्फ़त का डर

मुफ़लिस को बाज़ारों में
हर शै की क़ीमत का डर

सबसे ज़्यादा होता है
इंसां को इज्ज़त का डर

नीड़ बनाने वालों को
दुनिया की आदत का डर

‘अद्भुत’ को सबसे ज़्यादा
ख़ुद अपनी फ़ितरत का डर

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’

 

कैसे फकीर हो तुम

कैसे फ़क़ीर हो तुम
पैसे के पीर हो तुम

रखकर ज़मीर गिरवी
बनते अमीर हो तुम

जो दिल में चुभ रहा है
इक ऐसा तीर हो तुम

आगे न बढ़ सकी जो
ऐसी लकीर हो तुम

कविता में सौदेबाजी
कैसे कबीर हो तुम

© Deepak Gupta : दीपक गुप्ता

 

चांदनी से रात बतियाने सहेली आ गयी

चांदनी से रात बतियाने सहेली आ गयी
कुछ मुंडेरों के मुक़द्दर में चमेली आ गयी

पैर भी सुस्ता लिये, आँखों ने भी दम ले लिया
ज़िंदगी की राह में, दिल की हवेली आ गई

झाँकता है हर कोई ऐसे दिल-ए-नाशाद में
जैसे आंगन में कोई दुल्हन नवेली आ गई

बोझ कंधों का उतर कर गिर गया जाने कहाँ
जब मेरे सिर पे बुज़ुर्गों की हथेली आ गई

तीरगी का ख़ौफ़, सन्नाटे की दहशत थी मगर
इक किरण सूरज की धरती पर अकेली आ गयी

© Chirag Jain : चिराग़ जैन

 

उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती

उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती
हमको ही ख़ासकर नहीं मिलती

शाइरी को नज़र नहीं मिलती
मुझको तू ही अगर नहीं मिलती

रूह में, दिल में, जिस्म में दुनिया
ढूंढता हूँ मगर नहीं मिलती

लोग कहते हैं रूह बिकती है
मैं जहाँ हूँ उधर नहीं मिलती

© Kumar Vishwas : कुमार विश्वास

 

मैं समझाता कब तक

ख़ुद को मैं समझाता कब तक
सच को मैं झुठलाता कब तक

इकतरफ़ा था प्यार मेरा, मैं
तुम पर हक़ जतलाता कब तक

मेरा मन रखने की ख़ातिर
वो, सपनों में आता कब तक

दुनियादारी के चंगुल से
आख़िर मैं बच पाता कब तक

आख़िर अपनी तन्हाई से
‘दीपक’ मैं लड़ पाता कब तक

© Deepak Gupta : दीपक गुप्ता

 

चुप्पियाँ तोड़ना जरुरी है

चुप्पियाँ तोड़ना ज़रुरी है
लब पे कोई सदा ज़रुरी है

आइना हमसे आज कहने लगा
ख़ुद से भी राब्ता ज़रुरी है

हमसे कोई ख़फ़ा-सा लगता है
कुछ न कुछ तो हुआ ज़रुरी है

ज़िंदगी ही हसीन हो जाए
इक तुम्हारी रज़ा ज़रुरी है

अब दवा का असर नहीं होगा
अब किसी की दुआ ज़रुरी है

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

मुझको पुकारा नहीं गया

जिन रास्तों से मुझको पुकारा नहीं गया
उन पर कभी मैं दोस्त दुबारा नहीं गया

सागर की सम्त बढ़ती रही उम्र भर नदी
लहरों के साथ कोई किनारा नहीं गया

देखा था मुस्कुरा के मुझे उसने पहली बार
नज़रों से आज तक वो नज़ारा नहीं गया

हैरत के साथ उससे पशेमां हूँ आज भी
इक ख़्वाब था जो मुझसे सँवारा नहीं गया

तेरे बग़ैर उम्र तो मैंने गुज़ार दी
इक पल मगर सुकूँ से गुज़ारा नहीं गया

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

मील का पत्थर उदास है

मंज़िल का दर्द क़ल्ब में रहकर उदास है
बरसों से एक मील का पत्थर उदास है

मैं सोचकर उदास हूँ है रास्ता तवील
तू मंज़िलों के पास भी जाकर उदास है

यादों के कैनवास को अर्जुन नहीं मिला
रंगों की द्रोपदी का स्वयंवर उदास है

परछाइयों को देख सिसकती है चांदनी
ऊँचाइयों को देख समंदर उदास है

सपनों का ये लिबास नज़र से उतार तो
जो शाद दिख रहा है वही घर उदास है

जितनी बढ़ेगी तीरगी चमकेगा और भी
जुगनू को देख रात का पैकर उदास है

वो बात ही कुछ ऐसी ‘चरन’ कह गया मगर
सुनकर उदास मैं हूँ वो कहकर उदास है

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

खुली खिड़की-सी लड़की

एक खुली खिड़की-सी लड़की
देखी मस्त नदी-सी लड़की

ख़ुशबू की चूनर ओढ़े थी
फूल बदन तितली-सी लड़की

मैं बच्चे-सा खोया उसमें
वो थी चांदपरी-सी लड़की

जितना बाँचूँ उतना कम है
थी ऐसी चिट्ठी-सी लड़की

काश कभी फिर से मिल जाए
वो खोई-खोई-सी लड़की

© Naresh Shandilya : नरेश शांडिल्य