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तेरी गोदी-सी गरमाहट

भरे घर में तेरी आहट कहीं मिलती नहीं अम्मा
तेरे हाथों की नरमाहट कहीं मिलती नहीं अम्मा
मैं तन पे लादे फिरता हूँ दुशाले रेशमी फिर भी
तेरी गोदी-सी गरमाहट कहीं मिलती नहीं अम्मा

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

सिर्फ़ अकेले चलने का मन है

रिश्ते कई बार बेड़ी बन जाते हैं
प्रश्नचिह्न बन राहों में तन जाते हैं
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ अकेले चलने का मन है

तनहा चलना रास नहीं आता लेकिन
कभी-कभी तनहा भी चलना अच्छा है
जिसको शीतल छाँव जलाती हो पल-पल
कड़ी धूप में उसका जलना अच्छा है
अपना बनकर जब उजियारे छ्लते हों
अंधियारों का हाथ थामना अच्छा है
रोज़-रोज़ शबनम भी अगर दग़ा दे तो
अंगारों का हाथ थामना अच्छा है
क़दम-क़दम पर शर्त लगे जिस रिश्ते में
तो वह रिश्ता भी केवल इक बन्धन है
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ अकेले चलने का मन है

दुनिया में जिसने भी आँखें खोली हैं
साथ जन्म के उसकी एक कहानी है
उसकी आँखों में जीवन के सपने हैं
आँसू हैं, आँसू के साथ रवानी है
अब ये उसकी क़िस्मत कितने आँसू हैं
और उसकी आँखों में कितने सपने हैं
बेगाने तो आख़िर बेगाने ठहरे
उसके अपनों मे भी कितने अपने हैं
अपनों और बेगानों से भी तो हटकर
जीकर देखा जाए कि कैसा जीवन है
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ अकेले चलने का मन है

अपना बोझा खुद ही ढोना पड़ता है
सच है रिश्ते अक़्सर साथ नहीं देते
पाँवों को छाले तो हँसकर देते है
पर हँसती-गाती सौग़ात नहीं देते
जिसने भी सुलझाना चाहा रिश्तों को
रिश्ते उससे उतना रोज़ उलझते हैं
जिसने भी परवाह नहीं की रिश्तों की
रिश्ते उससे अपने आप सुलझते हैं
कभी ज़िन्दगी अगर मिली तो कह देंगे
तुझको सुलझाना भी कितनी उलझन है
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ अकेले चलने का मन है

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

कल्पना

कल्पना का एक किनारा
तुम्हारे हाथ में है
और दूसरा मेरे हाथ में
ये सिमट भी सकते हैं
और बढ़ भी सकते हैं

© Acharya Mahapragya : आचार्य महाप्रज्ञ

 

गीतकार मन

दुनिया भर के आंसू लेकर आखिर कहां कहां भटकोगे,
गीतकार मन, कहीं बैठकर गीत तुम्हें गाना ही होगा।

ज्ञात मुझे तुम चंदनवन से नागदंश लेकर लौटे हो
ज्ञात मुझे यह सागरतट से तुम प्यासे वापस आये,
कितने ही अपराह्न तुम्हारे ढलते रहे प्रतीक्षा में
कितने पुष्पमाल स्वागत के यूँ ही गुंधकर कुम्हलाए,
लेकिन तुमने हार नहीं मानी, कांटों में मुसकाये तुम
वह सारी अनुभूति भुलाकर मीत तुम्हें गाना ही होगा।

करती हैं व्यापार अमृत का गली गली में विष कन्यायें
भौंरे बैठे हैं फूलों पर गंधों के विक्रेता बनकर,
दूर दूर तक दृष्टि घुमाकर देखो एक बार तो देखो
मुकुट पहन कर बैठे सारे हारे हुये विजेता बनकर
घोर विसंगतियों के युग में तुम यों मौन नहीं रह सकते
रूठे युग फिर भी युग के विपरीत तुम्हें गाना ही होगा।

© Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल

 

हमने तो बस ग़ज़ल कही है

हमने तो बस ग़ज़ल कही है, देखो जी
तुम जानो क्या ग़लत-सही है, देखो जी

अक़्ल नहीं वो, अदब नहीं वो, हाँ फिर भी
हमने दिल की व्यथा कही है, देखो जी

सबकी अपनी अलग-अलग तासीरें हैं
दूध अलग है, अलग दही है, देखो जी

ठौर-ठिकाना बदल लिया हमने बेशक़
तौर-तरीक़ा मगर वही है, देखो जी

बदलेगा फिर समां बहारें आएंगी
डाली-डाली कुहुक रही है, देखो जी

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

न महलों की बुलंदी से

न महलों की बुलंदी से, न लफ़्ज़ों के नगीने से
तमद्दुन में निखार आता है घीसू के पसीने से

कि अब मर्क़ज़ में रोटी है, मुहब्बत हाशिए पर है
उतर आई ग़ज़ल इस दौर में कोठी के ज़ीने से

अदब का आइना उन तंग गलियों से गुज़रता है
जहाँ बचपन सिसकता है लिपट कर माँ के सीने से

बहारे-बेकिरां में ताक़यामत का सफ़र ठहरा
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से

अदीबों की नई पीढ़ी से मेरी ये गुज़ारिश है
संजो कर रक्खें ‘धूमिल’ की विरासत को करीने से

© Adam Gaundavi : अदम गौंडवी

 

ओस की बूँदें पड़ीं तो

ओस की बूँदें पड़ीं तो पत्तियाँ ख़ुश हो गईं
फूल कुछ ऐसे खिले कि टहनियाँ ख़ुश हो गईं

बेख़ुदी में दिन तेरे आने के यूँ ही गिन लिये
एक पल को यूँ लगा कि उंगलियाँ ख़ुश हो गईं

देखकर उसकी उदासी, अनमनी थीं वादियाँ
खिलखिलाकर वो हँसा तो वादियाँ ख़ुश हो गईं

आँसुओं में भीगे मेरे शब्द जैसे हँस पड़े
तुमने होठों से छुआ तो चिट्ठियाँ ख़ुश हो गईं

साहिलों पर दूर तक चुपचाप बिखरी थीं जहाँ
छोटे बच्चों ने चुनी तो सीपीयाँ ख़ुश हो गईं

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

ज़िंदगी मुश्क़िल से आती है

क़जा आती है पल– पल, ज़िंदगी मुश्क़िल से आती है
अगर हँसना भी चाहें तो, हँसी मुश्क़िल से आती है
उसी का नाम होठों पर उसी को है दुआ दिल से
जिसे शायद हमारी याद भी मुश्क़िल से आती है

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी