युग का यह वातायन

युग का यह वातायन !

दर्पण से ढँका हुआ,
बालू पर टिका हुआ;
जीवन पर्यन्त आग-पानी का परायण !
युग का यह वातायन !

अनुबन्धित-गरिमाएँ,
आतंकित-प्रतिभाएँ;
कर्म-भूमि गीता, किन्तु जन्म-भूमि रामायण !
युग का यह वातायन !

गति-निरपेक्ष मलय,
अथवा सापेक्ष-प्रलय;
जन-गण-मन उत्पीड़न, नारायण, नारायण !
युग का यह वातायन !

© Balbir Singh Rang : बलबीर सिंह ‘रंग’