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कैसे फकीर हो तुम

कैसे फ़क़ीर हो तुम
पैसे के पीर हो तुम

रखकर ज़मीर गिरवी
बनते अमीर हो तुम

जो दिल में चुभ रहा है
इक ऐसा तीर हो तुम

आगे न बढ़ सकी जो
ऐसी लकीर हो तुम

कविता में सौदेबाजी
कैसे कबीर हो तुम

© Deepak Gupta : दीपक गुप्ता

 

चुप्पियाँ तोड़ना जरुरी है

चुप्पियाँ तोड़ना ज़रुरी है
लब पे कोई सदा ज़रुरी है

आइना हमसे आज कहने लगा
ख़ुद से भी राब्ता ज़रुरी है

हमसे कोई ख़फ़ा-सा लगता है
कुछ न कुछ तो हुआ ज़रुरी है

ज़िंदगी ही हसीन हो जाए
इक तुम्हारी रज़ा ज़रुरी है

अब दवा का असर नहीं होगा
अब किसी की दुआ ज़रुरी है

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िन्दगी

आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िन्दगी
हम ग़रीबों की नज़र में इक क़हर है ज़िन्दगी

भुखमरी की धूप में कुम्हला गई अस्मत की बेल
मौत के लम्हात से भी तल्ख़तर है ज़िन्दगी

डाल पर मज़हब की पैहम खिल रहे दंगों के फूल
ख़्वाब के साए में फिर भी बेख़बर है ज़िन्दगी

रोशनी की लाश से अब तक जिना करते रहे
ये वहम पाले हुए शम्सो-क़मर है ज़िन्दगी

दफ़्न होता है जहाँ आकर नई पीढ़ी का प्यार
शहर की गलियों का वो गन्दा असर है ज़िन्दगी

© Adam Gaundavi : अदम गौंडवी

 

Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल

नाम : प्रवीण शुक्ल
जन्म : 7 जून 1970 (पिलखुवा)
शिक्षा : पीएच.डी.; स्नातकोत्तर (अर्थशास्त्र); बी.एड.

पुरस्कार एवं सम्मान
1) हिंदी गौरव सम्मान 1998
2) अट्टहास युवा रचनाकार सम्मान 2004
3) ओमप्रकाश आदित्य सम्मान 2006
4) काका हाथरसी पुरस्कार 2010

प्रकाशन
स्वर अहसासों के (काव्य संकलन)
कहाँ ये कहाँ वो (काव्य संकलन)
हँसते-हँसाते रहो (काव्य संकलन)
तुम्हारी आँख के आँसू (काव्य संकलन)
गांधी और गांधीगिरी
सफ़र बादलों का (यात्रा वृत्तांत)
हर हाल में ख़ुश हैं (अल्हड़ बीकानेरी की रचनाओं का संकलन)
इक प्यार का नग़मा है (संतोष आनंद की रचनाओं का संकलन)
मुहब्बत है क्या चीज़! (संतोष आनंद की रचनाओं का संकलन)
आइना अच्छा लगा (ग़ज़ल संग्रह)
नेताजी का चुनावी दौरा (व्यंग्य लेख संकलन)

निवास : नई दिल्ली

प्रवीण शुक्ल दिल्ली के एक विद्यालय में अर्थशास्त्र के व्याख्याता के रूप में सेवारत हैं। आपके पिता श्री ब्रज शुक्ल ‘घायल’ भी अपने काव्यकर्म के लिए जाने जाते हैं।

आप वर्तमान समय में हिंदी की वाचिक परंपरा के कवियों में अग्रिम पंक्ति में खड़े दिखाई देते हैं। हास्य, व्यंग्य, गीत, ग़ज़ल और अन्य तमाम विधाएँ आपके सृजन के दायरे में आती हैं। तमाम जनसंचार माध्यमों से आपकी रचनाएँ, शोधपत्र तथा साक्षात्कार प्रसारित-प्रकाशित हो चुके हैं। आपने बैंकाक, मस्कट, दुबई, भूटान और यूनाइटेड किंग्डम जैसे देशों में अपनी काव्य-पताका फहराई है।

आपकी काव्य प्रतिभा के आधार पर आपके विषय में पद्मश्री गोपालदास ‘नीरज’ ने ‘तुम्हारी आँख के आँसू’ की भूमिका में लिखा है कि- “प्रवीण शुक्ल ने अपनी काव्य-प्रतिभा का जो स्वरूप प्रस्तुत किया है, उसे देखने के बाद मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कह सकता हूँ कि उनके पास नया सोच, नया कथ्य, नया बिम्ब सभी कुछ अनूठा है। यह युवा कवि आगे चलकर साहित्य-जगत को कोई ऐसी कृति अवश्य देगा जिससे वह स्वयं तो बड़ा कवि माना ही जायेगा, साथ ही उसकी इस कृति से साहित्य-जगत भी गौरवान्वित होगा।”

 

मक़सद

मक़सद कुछ ज़िंदगी का ऊँचा बना के देख
संकल्प दृढ़ हो मन में, फिर क़दम बढ़ा के देख
तेरी ज़िंदगी भी रोशनी से पुरनूर होगी
किसी की चौखट पे तू भी दीपक जला के देख

© Ajay Sehgal : अजय सहगल

 

राज़ हर रंग में रुसवा होगा

लब-ए-ख़मोश से अफ़्शा होगा
राज़ हर रंग में रुसवा होगा

दिल के सहरा में चली सर्द हवा
अब्र गुलज़ार पे बरसा होगा

तुम नहीं थे तो सर-ए-बाम-ए-ख़याल
याद का कोई सितारा होगा

किस तवक्क़ो पे किसी को देखें
कोई तुम से भी हसीं क्या होगा

ज़ीनत-ए-हल्क़ा-ए-आग़ोश बनो
दूर बैठोगे तो चर्चा होगा

ज़ुल्मत-ए-शब में भी शर्माते हो
दर्द चमकेगा तो फिर क्या होगा

जिस भी फ़नकार का शाहकार हो तुम
उस ने सदियों तुम्हें सोचा होगा

किस क़दर कब्र से चटकी है कली
शाख़ से गुल कोई टूटा होगा

उम्र भर रोए फ़क़त इस धुन में
रात भीगी तो उजाला होगा

सारी दुनिया हमें पहचानती है
कोई हम सा भी न तनहा होगा

© Ahmad Nadeem Qasmi : अहमद नदीम क़ासमी

 

माटी

वीरों का अन्दाज़ कुछ निराला हुज़ूर होता है
उन्हें वतन से इश्क़ का अजब सरूर होता है
तिलक माटी का लगा रण में निकलते जब हैं ये
माटी तो इनकी नज़रों में माँ का सिन्दूर होता है

© Ajay Sehgal : अजय सहगल

 

भविष्य

भविष्य!
वर्तमान से निर्मित होता है
वर्तमान!
भविष्य में प्रतिबिंबित होता है
जो वर्तमान में जीता है
भविष्य उसी का होता है

© Acharya Mahapragya : आचार्य महाप्रज्ञ

 

स्मृतियाँ

अधखुली ऑंखों में
थिरकती नन्हीं पुतलियाँ
प्रतिबिम्बों का भार ढो रही हैं
पश्चिम के दरवाज़े पर
प्रतीक्षा से ऊबी
स्मृतियाँ
सिसक-सिकक
रो रही हैं।

– आचार्य महाप्रज्ञ

 

सर न झुकाया, हाथ न जोड़े

सर न झुकाया, हाथ न जोड़े
बेशक़ हम पर बरसे कोड़े

लाख परों को कतरा उसने
ख़ूब क़फ़स हमने भी तोड़े

हार गए ना दिल से आख़िर
दौड़े लाख ‘अक़ल के घोड़े’

हम वो एक कथा हैं जिसने
लाखों क़िस्से पीछे छोड़े

हमसे मत टकराना बबुआ
हमने रुख़ तूफ़ां के मोड़े

© Naresh Shandilya : नरेश शांडिल्य