असल में वहीं पर सुकूँ है

जहाँ पर दिलों में न घाटा, नफ़ा है असल में वहीं पर सुकूँ है, वफ़ा है किसी के बनो तुम या अपना बना लो मेरी ज़िंदगी का यही फ़लसफ़ा है उजालों में भी वो नहीं पास मेरे लगे मेरा साया भी मुझसे खफा हैं खड़ी जिंदगी, वक़्त के कटघरे में सजा कौन-सी, कौन-सी ये दफ़ा है कभी भी मुहब्बत न करता मै उससे अगर जान लेता कि वो बेवफ़ा है © Deepak Gupta : दीपक गुप्ता