जब कहीं चोट लगती है

जब कहीं चोट लगती है, मरहम की तरह दूर छूट गए पुराने दोस्त याद आते हैं। पुराने दोस्त वे होते हैं जो रहे आते हैं, वहीं के वहीं सिर्फ़ हम उन्हें छोड़कर निकल आते हैं उनसे बाहर। जब चुभते हैं हमें अपनी गुलाब बाड़ी के काँटे तब हमें दूर छूट गया कोई पुराना कनेर का पेड़ याद आता है। देह और आत्मा में जब लगने लगती है दीमक तो एक दिन दूर छूट गया पुराना खुला आंगन याद आता है मीठे पानी वाला पुराना कुआँ याद आता है बचपन के नीम के पेड़ की छाँव याद आती है। हम उनके पास जाते हैं, वे हमें गले से लगा लेते हैं हम उनके कन्धे पर सिर रखकर रोना चाहते हैं वे हमें रोने नहीं देते। और जो रुलाई उन्हें छूट रही होती है उसे हम कभी देख नहीं पाते। © Bhagwat Rawat : भगवत रावत