प्रयाण-गीत

आओ, देशवासियों शस्त्र को सँभाल लो ! पुण्य मातृ-भूमि से शत्रु को निकाल दो ! और कौन दिन काम आएँगी जवानियाँ ? साथ हैं हमारे बलिदान की निशानियाँ; आदिकाल से हैं हम पौरूष के वंशधर, आओ, दुहराएँ फिर कीर्ति की कहानियाँ; रक्त के उभार पर, वक्त की पुकार पर; शूरता के साँचे बीच करूणा को ढाल दो ! शत्रुओं के साथ कुछ अपने भी मित्र हैं, बुद्धि हुई नष्ट, भ्रष्ट उनके चरित्र हैं; तख्त और ताज की संधियों को फाड़ कर, शुद्ध कर लेंगे जो अशुद्ध मानचित्र है; देश की दुहाई है, आखिरी लड़ाई है; दुन्दुभी बुला रही है, ठीक समय ताल दो ! झुकने नहीं देंगे, भारत के भाल को, धूलि में मिलाएंगे, विरोधियों की चाल को; उन्नत हिमालय की चोटियों पर बैठ कर, हल कर लेंगे सरहद के सवाल को; शक्ति दी है राम ने, जो भी आए सामने; भूमि से उठा, उन्हें व्योम में उछाल दो ! © Balbir Singh Rang : बलबीर सिंह ‘रंग’