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बच्चा

अलमुनियम का वह दो डिब्बों वाला
कटोरदान
बच्चे के हाथ से छूटकर
नहीं गिरा होता सड़क पर
तो यह कैसे पता चलता
कि उनमें
चार रूखी रोटियों के साथ-साथ
प्याज़ की एक गाँठ
और दो हरी मिर्चें भी थीं

नमक शायद
रोटियों के अंदर रहा होगा
और स्वाद
किन्हीं हाथों और किन्हीं आँखों में
ज़रूर रहा होगा

बस इतनी सी थी भाषा उसकी
जो अचानक
फूटकर फैल गई थी सड़क पर

यह सोचना
बिल्क़ुल बेकार था
कि उस भाषा में
कविता की कितनी गुंजाइश थी
या यह बच्चा
कटोरदान कहाँ लिये जाता था

© Bhagwat Rawat : भगवत रावत

 

न महलों की बुलंदी से

न महलों की बुलंदी से, न लफ़्ज़ों के नगीने से
तमद्दुन में निखार आता है घीसू के पसीने से

कि अब मर्क़ज़ में रोटी है, मुहब्बत हाशिए पर है
उतर आई ग़ज़ल इस दौर में कोठी के ज़ीने से

अदब का आइना उन तंग गलियों से गुज़रता है
जहाँ बचपन सिसकता है लिपट कर माँ के सीने से

बहारे-बेकिरां में ताक़यामत का सफ़र ठहरा
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से

अदीबों की नई पीढ़ी से मेरी ये गुज़ारिश है
संजो कर रक्खें ‘धूमिल’ की विरासत को करीने से

© Adam Gaundavi : अदम गौंडवी

 

भूख के अहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो

भूख के अहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो

जो ग़ज़ल माशूक़ के जल्वों से वाक़िफ़ हो गई
उसको अब बेवा के माथे की शिक़न तक ले चलो

मुझको नज़्मो-ज़ब्त की तालीम देना बाद में
पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो

गंगाजल अब बुर्जुआ तहज़ीब की पहचान है
तिश्नगी को वोदका के आचमन तक ले चलो

ख़ुद को ज़ख्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोखे में लोग
इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो

Adam Gaundavi : अदम गौंडवी

 

Adam Gaundavi : अदम गौंडवी


नाम : अदम गौंडवी
जन्म : 22 अक्टूबर 1947; गोंडा

पुरस्कार एवं सम्मान
दुष्यंत कुमार पुरस्कार (मध्य प्रदेश सरकार) 1998

प्रकाशन
धरती की सतह पर
समय से मुठभेड़

निधन : 18 दिसंबर 2011; लखनऊ


ग़ज़ल को जब भी सत्ता की आँख में आँख डालकर कुछ कहने की ज़रूरत होगी तो अदम गौंडवी के अशआर सन्दर्भ बन जाएंगे. जुम्मन के घर की टूटी रकाबी से लेकर घीसू के पसीने की गंध तक हर वह तत्व अदम साहब के सुख़न का हिस्सा है जिसे इससे पहले ग़ज़ल के लिए अछूत माना जाता था. ग़ज़ल ने ज़ुल्फ़ों के पेचोख़म से निकल कर दराती और फावड़े तक का सफर अदम साहब की रहबरी में ही तय किया है.