अब तो ख़ुशी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा

अब तो ख़ुशी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा आसूदगी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा सब लोग जी रहे हैं मशीनों के दौर में अब आदमी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा आई थी बाढ़ गाँव में, क्या-क्या न ले गई अब तो किसी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा घर के बुज़ुर्ग लोगों की आँखें ही बुझ गईं अब रौशनी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा आए थे मीर ख़्वाब में कल डाँट कर गए ‘क्या शायरी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा?’ © Alok Srivastava : आलोक श्रीवास्तव