बर्गर

अपनी बेरोज़गारी से तंग होकर एक बार मुझे बनना पड़ा मैक्डोनॉल्ड जैसे रेस्तरां में जोकर वहाँ जो भी बच्चा आता मैं उसका दिल बहलाता उनसे हँस-हँसकर हाथ मिलाता बच्चों को गोद लेता उनको रंग-बिरंगे गिफ़्ट देता देर रात जब ये खेल ख़त्म हो जाता तब उतार कर मुखौटा मैं अपने घर जाता तब तक मेरा बच्चा मेरी राह तक कर सो जाता सारा दिन मैं रेस्तरां में लगा रहता बच्चों को हँसाने में एक नई ख़ुशी घोलता उनके खाने में तभी उन्हीं बच्चों में से किसी की आँखों में मुस्कुराने लगता मेरा बच्चा सपनों में ही सही मैक्डोनॉल्ड का बर्गर खाने लगता मेरा बच्चा ख़ैर कुछ महीनों के बाद मेरा इस नौकरी से हिसाब हो गया मेरे भीतर का जोकर कहीं खो गया बिना मुखौटे के सादे कपड़ों में जब मैं मांगने आया अपनी पगार कोई बच्चा मेरी गोद में नहीं आया न किसी बच्चे ने किया प्यार उन जाने-पहचाने बच्चों को देख मैं बहुत मुस्कुराया पर कोई बच्चा मेरे पास तक न आया बच्चों के माँ-बाप ने घूर कर मुझे देखा। मैनेजर ने कहा- ”पहले यहाँ नौकर था।” बच्चे अब भी हँस रहे थे रेस्तरां में पहले की ही तरह एक नया जोकर था वह भी मुस्कुराता हुआ सपने देख रहा था शायद अपने बच्चे के लिए बर्गर सेक रहा था वह इन मुस्कुराते बच्चों में आधे पेट कुनमुनाता अपना बच्चा देख रहा था। © Vivek Mishra : विवेक मिश्र