तुम तक नींद न आई होगी

तुम तक नींद न आई होगी
मेरी आँखों से
मेरी आँखों से ओझल हो, तुम तक नींद न आई होगी !

नींद स्वयं ही चुरा ले गई,
मेरे मन के स्वप्न ही सुहाने;
अँधियारी-रजनी के धोखे,
भूल हो गई यह अनजाने;

जितनी निकट नींद के उतनी, और कहाँ निठुराई होगी ?
मेरी आँखे से ओझल हो, तुम तक नींद न आई होगी ?

मिलन-विरह के कोलाहल में,
तुम अब तक एकाकी कैसे ?
परिवर्तन-शीला संसृति में,
तुम सचमुच जैसे-के-तैसे;

ऐसी आराधना, धरा पर, कब किसने अपनाई होगी,
मेरी आँखों से ओझल हो, तुम तक नींद न आई होगी ।

यौवन की कलुषित-कारा में
तुम पावन से भी अति पावन,
पापी-दुनिया बहुत बुरी है,
ओ, मेरे भाले मनभावन !

देख तुम्हारी निर्मलता को, शबनम भी शरमाई होगी !
मेरी आँखों से ओझल हो, तुम तक नींद न आई होगी !

© Balbir Singh Rang : बलबीर सिंह ‘रंग’