फिर वही मौसम

लौट आया फिर वही मौसम उसी नदिया किनारे। जिस नदी के तीर हमने रेत के कुछ घर गढ़े थे, फूल जैसे पाँव थे पर स्वर्ग की सीढ़ी चढ़े थे, और समयातीत होकर प्रेम के आखर पढ़े थे, हो रहे हैँ नैन आकुल नम उसी नदिया किनारे। जिस नदी के तीर हमने चाँदनी नभ से उतारी, जिस नदी के तीर रोकी थी कभी रवि की सवारी, रेत से हमने किसी दिन माँग भर दी थी तुम्हारी, एक पल को हर विषम था सम उसी नदिया किनारे। दिन पलासी था यही जब तुम नदी के पार उतरे, सँग तुम्हारे नाव उतरी और सब पतवार उतरे, हम न जा पाये जहाँ सब लोग कितनी बार उतरे, लौट आओ अब!खड़े हैँ हम उसी नदिया किनारे। © Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल