तुम से क्या कहूँ

हर समय, हर बात, तुम से क्या कहूँ मैं ? हर कोई हर बात कह पाता नहीं, और हर आघात सह पाता नहीं है; क्या करूँ मजबूर है जलयान मेरा, हर लहर के साथ बह पाता नहीं है; आज भी इस प्रश्न को लेकर उछा है, सिंधु में उत्पात, तुम से क्या कहूँ मैं ? कौन जाने कब कहाँ परिचय हुआ था? एक नुतन सृष्टि का अभिनय हुआ था; अनकहे, अनबू़झे वचनों की शरण में, रूप के संग प्रीति का परिणय हुआ था; कब बँधा कंगन, कहाँ बाजी बधाई, कब गई बारात, तुम से क्या कहूँ मैं ? एक पल भी कल्पना की गति न ठहरी, साधना करते रहे थे, शब्द-प्रहरी; तारकों ने सेज सपनों की सजा दी, यामिनी को आ गई कब नींद गहरी; “कब तलक जागी प्रतीक्षा की पुजारिन, हो गया कब प्रात“, तुम से क्या कहूँ मैं ? © Balbir Singh Rang : बलबीर सिंह ‘रंग’