आंधियों में दिये

दर्द को तह-ब-तह सजाता है कौन कमबख्त मुस्कुराता है और सब लोग बच निकलते हैं डूबने वाला डूब जाता है उसकी हिम्मत तो देखिये साहब! आंधियों में दिये जलाता है शाम ढलने के बाद ये सूरज अपना चेहरा कहां छुपाता है नींद आंखों से दूर होती है जब भी सपना कोई दिखाता है लोग दूरी बना के मिलते हैं कौन दिल के करीब आता है तीन पत्तों को सामने रखकर कौन तकदीर आजमाता है? © Davendra Gautam : देवेंद्र गौतम