तुमको खोकर क्या पाए मन?

अब गीतों में रस उतरा है, अब कविता में मन पसरा है हम सबकी पहचान हुए हैं, हम सबके प्रतिमान हुए हैं हम नदिया की रेंत हुए हैं, हम पीड़ा के खेत हुए हैं आंसू बोकर हरियाए मन, तुमको खो कर क्या पाए मन? जब हमने उल्लास मनाया लोग नहीं मिल पाएं अपने सबकी आँखों को भाते हैं कुछ आँखों के टूटे सपने होती है हर जगह उपेक्षित मधुमासों की गीत, रुबाई होकर बहुत विवश हमने भी इन अधरों से पीड़ा गाई अब टीसों पर मुस्काए मन अब घावों के मन भाए मन तुमको खोकर क्या पाए मन? हमने भाग्य किसी का, अपनी रेखाओं में लाख बसाया प्रेम कथा को जीवन में बस मिलना और बिछड़ना भाया हमको तो बस जीना था, फिर संग तुम्हारे मर जाना था जीवन रेखा को अपने संग इतनी दूर नहीं आना था अब सांसों से उकताए मन जीते-जीते मर जाए मन तुमको खोकर क्या पाए मन? सुनते हैं, तुम भाल किसी के इक सूरज रोज़ उगाते हो टांक चन्द्रमा, नरम हथेली मेहंदी रोज़ सजाते हो सुनते हैं, उस भाग्यवती की मांग में तुम्हारा ही कुमकुम है बीता कल है प्रेम हमारा यादों में केवल हम-तुम हैं उन यादों से भर आए मन अक्सर उन पर ललचाए मन तुमको खोकर क्या पाए मन? © Manisha Shukla : मनीषा शुक्ला