Tag Archives: Philosophy

भीड़

मुझ में सीता
मुझ में राम
मुझ में राधा और घनश्याम
मीरा मुझ में, कबिरा मुझ में
मुझ में पद्मावत, अखरावट
मुझ में रासो, मुझ में आल्हा
मुझ में शेक्सपीयर, सुकरात
मुझ में होमर
मुझ में गेटे
बीथोवन और बैजू बावरा
ईसा मुझ में
मूसा मुझ में
सूफी और कलन्दर मुझ में
मुझमें ग़ालिब और इक़बाल
रवीन्द्रनाथ, ख़य्याम और पुश्क़िन
रश्दी और नसरीन भी मुझ में
मुझ में गांधी
मुझ में जिन्ना
हाय मेरे रब्बा
भीड़ लगी है
मेरे घर इतने मेहमान
मैं हैरान!

© Jagdish Savita : जगदीश सविता

 

साथ सब ना चल सकेंगे

साथ सब ना चल सकेंगे, ये तो हम भी जानते हैं
लोग रस्ते में रुकेंगे, ये तो हम भी जानते हैं
दूसरों के आँसू अपनी, आँख से जो भी बहाए
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए

दूसरों को जानते हैं, ख़ुद को पहचाना नहीं है
बात है छोटी मगर, सबने इसे माना नहीं है
बौने क़िरदारों को अक़्सर होता है क़द का गुमां
क़द किसी का नापने का भीड़ पैमाना नहीं है
हम तो बस उस आदमी के साथ चलना चाहते हैं
जो अकेले में कभी ना, आइने से मुँह चुराए
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए

आवरण भाने लगे तो सादगी का अर्थ भूले
अर्थ की चाहत में पल-पल ज़िन्दगी का अर्थ भूले
छोटी ख़ुशियाँ द्वार पर दस्तकें तो लाईं लेकिन
हम बड़ी ख़ुशियों में छोटी हर ख़ुशी का अर्थ भूले
दूसरों की ख़ुशियों में जो ढूंढकर अपनी ख़ुशी को
भोली-सी मुस्कान हर दम अपने होठों पर सजाए
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए

हर किसी को ये भरम है, साथ है दुनिया का मेला
पर हक़ीक़त में सभी को होना है इक दिन अकेला
ज़िन्दगी ने मुस्कुरा कर बस गले उसको लगाया
जिसने भी ज़िदादिली से ज़िंदगी का खेल खेला
दुनिया में उसको सभी मौसम सुहाने लगते हैं
मौत की खिलती कली पर, भँवरा बन जो गुनगुनाए
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

फ़ासला कम अगर नहीं होता

फ़ासला कम अगर नहीं होता
फ़ैसला उम्र भर नहीं होता

कौन सुनता मेरी कहानी को
ज़िक्र तेरा अगर नहीं होता

बात तर्के-वफ़ा के बाद करूँ
हौसला अब मगर नहीं होता

कैसे समझाऊँ मैं तुझे ऐ दिल
सामरी हर शजर नहीं होता

तेरी रहमत का जिस पे साया हो
ख़ुद से वो बेख़बर नहीं होता

कौन कहता है ज़िन्दगानी का
रास्ता पुरख़तर नहीं होता

‘मीत’ मिलते हैं राहबर तो बहुत
पर कोई हमसफ़र नहीं होता

© Anil Verma Meet : अनिल वर्मा ‘मीत’

 

प्रेम के पुजारी

प्रेम के पुजारी
हम हैं रस के भिखारी
हम है प्रेम के पुजारी

कहाँ रे हिमाला ऐसा, कहाँ ऐसा पानी
यही वो ज़मीं, जिसकी दुनिया दीवानी
सुन्दरी न कोई, जैसी धरती हमारी

राजा गए, ताज गया, बदला जहाँ सारा
रोज़ मगर बढ़ता जाए, कारवां हमारा
फूल हम हज़ारों लेकिन, ख़ुश्बू एक हमारी

© Gopaldas Neeraj : गोपालदास ‘नीरज’

फिल्म : प्रेम पुजारी (1970)
संगीतकार : सचिन देव बर्मन
स्वर : सचिन देव बर्मन

 

जीवन नहीं मरा करता है

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ लुटाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है

सपना क्या है, नयन सेज पर सोया हुई आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है

माला बिखर गई तो क्या है, ख़ुद ही हल हो गई समस्या
आँसू ग़र नीलाम हुए तो, समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फ़टी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आंगन नहीं मरा करता है

लाखों बार गगरियाँ फूटीं, शिक़न नहीं आई पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं, चहल-पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालों, लौ की आयु घटाने वालों
लाख करे पतझड़ क़ोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है

लूट लिया माली ने उपवन, लुटी न लेकिन गंध फूल की
तूफ़ानों तक ने छेड़ा पर, खिड़की बंद न हुई धूल की
नफ़रत गले लगाने वालों, सब पर धूल उड़ाने वालों
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से, दर्पण नहीं मरा करता है

© Gopaldas Neeraj : गोपालदास ‘नीरज’

 

भावुक प्रेम

 

भावुक प्रेम
नहीं…
हूँ.…
और एक सुबकी
तारे, पानी की बूँदें दो-चार
ये तत्त्व हैं उस बहुप्रशिंसित प्रेम के
जो उफनता है
और उफनता ही रहता है
किसी भावुक हृदय में
और भावुकता का नशा
मात्र शराब का
जो चढ़ता है उतरने को
और तोड़ देता है
तन को
मन को

© Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर

 

ज़माना बदल गया

कम्बख़्त मेरी एक न माना बदल गया
पल भर में मेरा दोस्त पुराना बदल गया

जो मुझको चाहता था मेरा हाल देखकर
निकला है मेरा दोस्त सयाना बदल गया

आख़िर वही हुआ जो मुक़द्दर में था लिखा
तू क्या बदल गया कि ज़माना बदल गया

मुझको यक़ीन था कि स्वयंवर मैं जीतता
पर ऐन वक़्त मेरा निशाना बदल गया

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण