रूमाल बनना है मुझे

आँसुओं में बह रहा हो दर्द जिसका भी जहाँ बस उसी के हाथ का रूमाल बनना है मुझे मैं नहीं कहता किसी से पीर यह अपनी कभी देखता हूँ दर्द सब के पास, हैं डूबे सभी, नाचती मुस्कान या जिस पर थिरकती हो हँसी बस वही संगीत या सुर ताल बनना है मुझे हर तरह की राह चलने के लिये तैयार हूँ हो जहाँ अँधियार, जलने के लिए तैयार हूँ उग रहा हो सूर्य तो स्वागत समर्पण के लिए बस उसी की आरती का थाल बनना है मुझे गीत गाता हूँ कि मैं दो चार पल मुस्का सकूँ जो न अब तक बोल तुम पाये उसे मैं गा सकूँ बस तुम्हारे ही लिए गाता रहूँगा उम्र भर और क्या? मित्रों,यही फिलहाल बनना है मुझे © Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल